Super-99 एक सीमित छात्रों का समूह है जिसमें बैंच में मात्र-99 छात्र ही होंगे। यह माध्यम श्रैणी के छात्र एवं छात्राओं की आशा एवं आकांक्षाओं को पूरा करने का एक संकल्प है, होनहार छात्र अब फीस के अभाव में ना रूकने पाऐं उसका विकल्प है सुपर-99
99-छात्रों की प्रतिशतन सफलता का सकंल्प है। प्रतिभा के सम्मान का संकल्प है। यहाँ देश को विकास की ओर ले जाने वाली शिक्षण व्यवस्था का सर्वोत्तम साधन है यहाँ सवेरे से लेकर दोपहर तक एवं दोपहर बाद से क्ण्च्ण्च् भी छात्रों को अध्यापकों के साथ में हल कराई जायेंगी।
प्रतिभाओं को निखारने का संकल्प है सुपर-99
निशान्स एक सुदृढ़ एवं उन्नत विकासोन्मुखी शिक्षा पद्धति का सपना, समाज को उन्नति की ओर ले जाने का प्रयास है।
‘‘जिस व्यक्ति के पास धन दौलत ना हो, पर उन्नत एवं उच्च शिक्षा हो तो गरीबी दूर हो सकती है। परन्तु जिसके पास धन हो और शिक्षा ना हो तो वो धन भी बेकार है।’’
‘‘राष्ट्र का वैज्ञानिक स्तर बढ़ाने का ससवत्त माध्यम है शिक्षा।’’
‘‘शिक्षा ही सफलता की प्रथम सीढ़ी है।’’
‘‘आज के शैक्षणिक दौर में छात्रों को संस्कार की भी आवश्यकता है यह संकल्प है निशान्स का
राष्ट्रीयता का रचानात्मक कार्येक्रमों में छात्रों की व संस्थान की भागीदारी भी निशान्स का लक्ष्य है।’’
‘‘निशान्स का उद्धेश्य गरीब व मध्यमश्रेणी के छात्र एवं छात्राओं को सफलता तक पहुँचाना है। व्यवसाय नही।’’
‘‘कुछ लोगों ने शिक्षा को एक व्यवसाय बना रखा है उनके खिलाफ एक आवाज है। ‘‘निशान्स’’।
आपका विश्वास ही हमारी शक्ति और सामर्थ के सफलता के उच्च शिखर तक ले जाता है और आगे भी उन्नति की ओर बढ़ता रहेगा।
‘‘यदि कोई गरीब परिवार के छात्र एवं छात्राऐं महंगे शिक्षण संस्थानों तक नहीं पहुँच पाऐ ंतो हम शिक्षा को ही उनके पास ले जाते है।’’
शिक्षा ;प्प्ज्ध्छम्म्ज्द्ध का संकल्प हो धैर्यपूर्वक प्रयत्न हो। और सफलता के लिए लक्ष्य हो। सामर्य के अनुसार कुछ प्रयास अध्यापकों के साथ छात्रों को भी साथ निभाना चाहिए।
‘‘भविष्य निर्माण के लिए चल पड़ों, हो सकता है रास्तें में कठीनाइयाँ भी आऐं उनको पार करते हुए आगे बढ़ों आगे बढ़ों बढ़ते रहो,रूकों मत कल मंजिल तुम्हारे कदमों में होगी। मत चिंता करो लोग क्या करते है, हमें सिर्फ हमारी मंजिल ही देखनी है। और दिखनी भी मंजिल ही चाहिए। सफलता के लिए एक जुनुन चाहिए। वो तुम्हारे पास भी हो, और मेरे पास भी है। आवों हम मिलकर चलते है। मंजिल सामने है।’’
‘‘दूसरों की क्षमताओं और उपलब्धियों से सीखकर स्वयं को किस प्रकार विकसित किया जाय, इसका मार्ग शिक्षा ही सुझाती है। वह सहयोगापेक्षा के रूप में मनुष्य शिशु को आरम्भ से ही वह कला सिखा देती है, जिसके बल पर बच्चा आगे चलकर अपनी क्षमताओं का स्वामी बन जाता है तथा योग्यताओं में उनको बदल देता है।